आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर व्यक्ति एक बेहतर जिंदगी की रेस में भाग रहा है। लेकिन उनमें से सिर्फ कुछ ही लोग अपने लक्ष्यों को हासिल कर पाते हैं, जबकि ज्यादातर लोग अपने लक्ष्य तक कभी पहुंच नहीं पाते। हम जब भी अपने लक्ष्य की ओर अपना कदम बढ़ाते हैं तो हमारे मन में तरह तरह के विचार उठने लगते हैं। जैसे मैं इसे हासिल कर भी पाऊंगा या नहीं और इसमें तो बहुत समय लगेगा, लेकिन मेरे पास इतना समय ही नहीं है। अगर मैं सफल हो गया तो लोग क्या कहेंगे? वगैरह वगैरह। लेकिन इन सब में भी जो सबसे बड़ा डर रहता है, वह यह है कि मैं इस काम में सफल हो भी पाऊंगा या नहीं। तो आज के इस बोध कहानी के माध्यम से हम जानेंगे कि अपनी असफलता के डर को कैसे खत्म किया जाए और साथ ही हम यह भी जानेंगे कि हमारे मन में यह सफलता का डर क्यों पैदा होता है? इसका क्या कारण है? तो आइए कहानी को शुरू करते हैं। बहुत समय पहले की बात है। एक बौद्ध संन्यासी एक जंगल के पास अपनी कुटिया बनाकर रहा करते थे। वे बौद्ध संन्यासी बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति थे। जो भी उनके पास अपनी समस्या लेकर आता, वह बहुत ही बुद्धिमानी से उसकी समस्या का समाधान निकाल देते। एक दिन वे वहीं पास के ही एक गांव में भिक्षाटन के लिए गए। जब वह भिक्षा मांगकर वापस लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक युवा व्यक्ति ने रोक लिया और कहा, मैंने सुना है कि आप किसी भी समस्या को बड़ी ही बुद्धिमानी से सुलझा देते हैं। हालांकि मुझे तो जरा भी विश्वास नहीं कि आप मेरी इस जटिल समस्या को सुलझा पाएंगे, लेकिन मैंने लोगों से आपकी बुद्धिमानी के बहुत से किस्से सुन रखे हैं। इसीलिए मैं आपसे एक बात जानना चाहता हूं कि हमें किसी भी काम में असफलता की घबराहट क्यों होती है और हम अपने किसी भी लक्ष्य को असफलता की घबराहट के बिना कैसे प्राप्त कर सकते हैं? युवा व्यक्ति का यह प्रश्न सुन बौद्ध संन्यासी मुस्कुराए और बोले, मैं तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर जरूर दूंगा और उसके बाद से तुम्हारी सारी घबराहट भी खत्म हो जाएगी। लेकिन उससे पहले तुम्हें मेरे साथ, मेरी कुटिया तक चलना होगा। वह युवा लड़का उस संन्यासी की बुद्धिमता को परखना चाहता था। इसीलिए वह कुटिया तक जाने के लिए तैयार हो गया।
इसके बाद वह बौद्ध संन्यासी उस लड़के को अपने जंगल के पास बनी कुटिया में ले आई। लेकिन तब तक शाम हो चुकी थी, इसीलिए वह भोजन करके सो गए। अगले दिन जब वह उठे तो बौद्ध संन्यासी ने उस लड़के से कहा, चलो, आज में तुम्हें जंगल की सैर कराकर लाता हूं और वह दोनों जंगल की तरफ निकल पड़े। कुछ देर बाद बौद्ध संन्यासी ने उस लड़के को एक गुफा दिखाई और कहा, चलो, मैं तुम्हें उस गुफा की सैर कराता हूं। लड़के ने कहा हां, चलिए मेरी भी जंगल की गुफा देखने की काफी दिनों से इच्छा थी। इसके बाद वे दोनों गुफा के अंदर चले गए। गुफा के अंदर काफी अंधेरा था, लेकिन थोड़ी देर बाद बौद्ध संन्यासी चुपके से गुफा से बाहर निकल आए और उस गुफा के द्वार को बाहर से बंद कर दिया। उस लड़के ने गुफा के भीतर से बहुत आवाज दी कि मुनिवर कहां हैं, आप कहां चले गए? मुझे जवाब क्यों नहीं दे रहे? लेकिन बहुत देर तक कोई जवाब न मिलने के बाद वह घबरा गया और घबराकर गुफा के द्वार की तरफ भागा। जैसे ही वह गुफा के प्रवेश द्वार पर पहुंचा, वह हैरान रह गया कि यह क्या यहां तो किसी ने गुफा के द्वार को बाहर से बंद कर दिया है। अब मैं बाहर कैसे निकलूंगा? अब वह अकेले अकेले उस अंधेरी गुफा में काफी भयभीत और परेशान हो गया। वह सोचने लगा कि कहीं उस संन्यासी ने उसे मारने की योजना तो नहीं बनाई थी। अब वह गुफा में इधर उधर घूमकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगा। वह गुफा में काफी देर तक इधर उधर भटकता रहा, लेकिन उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। अब उसे जोरों की प्यास और भूख भी लग रही थी। इसीलिए वह शांत होकर एक जगह बैठ गया। तभी उसे एक सुरंग से सूर्य की रोशनी आती हुई दिखाई दी और उस रोशनी आने वाली सुरंग तक पहुंचना बहुत ही कठिन था, क्योंकि चारों तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा था और वह सुरंग भी काफी ऊंचाई पर थी। पर फिर भी वह तुरंत उठा और अपनी सारी भूख प्यास को भूलकर अपना सारा ध्यान उस गुफा से बाहर निकलने पर लगा दिया। काफी मेहनत और प्रयास करने के बाद वह उस सूर्य की रोशनी आने वाली सुरंग तक पहुंच गया और कुछ दूर तक उस सुरंग में ऊपर चढ़ता गया। तभी अचानक उसे वह संन्यासी हाथ आगे बढ़ाता हुआ दिखाई दिया। वह लड़का झट से उस संन्यासी का हाथ पकड़कर बाहर आ गया और बाहर निकलते ही उस संन्यासी को गुस्से से चिल्ला कर कहा, मुनिवर, आप पागल हो गए हैं। आप मुझे इस अंधेरी गुफा में अकेले छोड़कर आ गए। आपको पता है मैं कितना भयभीत हो गया था और मुझे कितनी जोरों की प्यास लगी है। उस संन्यासी ने मुस्कुराते हुए उसे पानी दिया और कहा, अब मेरी बातों को ध्यान से सुनना। तुम इस गुफा के बाहर सिर्फ दो कारणों की वजह से निकल पाए, जिसने तुम्हें इस गुफा से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया। पहला कारण क्योंकि तुम्हें जोरों की प्यास और भूख लगी थी और दूसरा कारण तुम्हें वहां घुटन महसूस हो रही थी, क्योंकि तुम्हें मित्रों और परिवार वालों के साथ रहने की आदत पड़ चुकी है। अब मैं तुम्हें दो मुख्य कारण बताता हूं जिसकी वजह से तुम इस गुफा से बाहर। पाई। पहला कारण क्योंकि तुम्हारे साथ वहां यह कहने के लिए लोग नहीं थे कि इतने अंधेरे में इतनी ऊंचाई पर तुम उस सुरंग तक कैसे पहुँच पाओगे?
यह तो असंभव है। और दूसरा कारण वहाँ यह कहने के लिए भी लोग नहीं थे कि चलो कोई दूसरा रास्ता देखते हैं। इससे भी आसान रास्ता मिल जाएगा और हम बहुत आसानी से इस गुफा से बाहर निकल जाएंगे। सफलता प्राप्त करने का नियम भी कुछ ऐसा ही है। यह तो मैंने तुम्हें सफलता कैसे प्राप्त करें, इसकी एक छोटी सी दुनिया बनाकर दिखाई है, पर वास्तविक दुनिया इससे कहीं अधिक जटिल होती है। वहाँ हमें सलाह देने के लिए बहुत से फालतू लोग मिल जाते हैं, जो खुद तो कुछ कर नहीं पाए, लेकिन हमें ज्ञान देंगे कि यह मत करो। यह बहुत कठिन है। यह तुमसे न हो पाएगा। इससे अच्छा तो तुम वह काम कर लो। उसमें तुम्हें निश्चित रूप से सफलता मिल जाएगी और ऐसे ही वह हमारे दिमाग को भटकाकर चले जाते हैं और हमें खुद पर संदेह होने लगता है। सफलता न मिलने का एक बड़ा कारण यह भी है कि सफलता प्राप्त करने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है और यहां जब हमारा मन घंटों घंटों में बदल जाता है तो फिर लक्ष्य प्राप्ति के महीनों और सालों के प्रयास में हमारा मन क्यों नहीं बदलेगा? हमारा मन बदल ही जाता है और हम उस रास्ते को छोड़कर अलग अलग रास्ते अपनाने लगते हैं। गौतम बुद्ध अक्सर अपने शिष्यों से कहा करते थे कि परेशानियां हमें तभी दिखती हैं, जब हमारा ध्यान हमारे लक्ष्य पर नहीं होता और यह बात सौ प्रतिशत सही है। जैसे जब एक तीरंदाज तीर मारने वाला होता है तो वह अपनी एक आंख को बंद कर लेता है और दूसरी आंख से सिर्फ लक्ष्य को देखता है, तब जाकर वह अपने लक्ष्य को भेद पाता है। ठीक इसी प्रकार हमें असफलता का डर तभी लगता है जब हमारा ध्यान अपने लक्ष्य पर ना होकर रास्ते पर आने वाली कठिनाइयों पर होता है। तुम भी इस गुफा से बाहर इसीलिए निकल पाए क्योंकि तुम्हें गुफा के अंदर सुरंग से आनेवाली रोशनी के अलावा और कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था। अगर उस गुफा के अंदर प्रकाश होता तो तुम वहां के बड़े बड़े गड्ढों और कीड़े मकोड़ों को देखकर डर जाते और वहीं भटकते रह जाते। इसीलिए अपना सारा ध्यान केवल अपने लक्ष्य पर टिकाए रखो और आसपास क्या हो रहा है, लोग क्या बोल रहे हैं, उस पर ध्यान देना बंद कर दो। तुम्हारे मित्र और रिश्तेदार क्या कर रहे हैं? उन्हें सफलता मिली की नहीं, यह सब देखना बंद कर दो और केवल खुद के काम पर ध्यान दो। फिर देखना कि जब तुम्हारा समय आएगा तो लोग खड़े होकर तुम्हारे लिए तालियां बजाएंगे। और इतना कहकर वह बौद्ध संन्यासी मौन हो गए। उस युवा लड़के ने कहा, मुनिवर! आपने तो आज मेरी आंखें ही खोल दी। आपकी कही हर एक बात में मुझे बुद्धिमानी नजर आई। आप सच में बहुत बुद्धिमान हैं, इसीलिए सभी आपकी बुद्धिमानी का लोहा मानते हैं। मैं आपको वचन देता हूं कि आज से मेरे मन को कभी भी असफलता का भय नहीं सताएगा। मैं अपना पूरा ध्यान सिर्फ अपने काम पर लगाऊंगा और जल्दी ही एक सफल व्यक्ति बनकर दिखाऊंगा। इतना कहकर उस लड़के ने बौद्ध संन्यासी का धन्यवाद किया और वापस अपने गांव चला गया। दोस्तों, आशा है कि आप इस कहानी की सीख को समझ गए होंगे। धन्यवाद।