खुद पर विश्वास करना सीखो। Khud par vishwas kaise kre। Khud par vishwas karna sikho.

खुद पर विश्वास करना सीखो, ये तुम्हारी जिंदगी बदल जायेगी।

  • खुद पर विश्वास करना सीखो।
  • खुद पर विश्वास कैसे करें?
  • Self Believe
  • Confidence कैसे बढ़ाएं
  • खुद पर भरोशा करो।

किसी को कामयाबी बहुत जल्दी मिल जाती है तो किसी को कामयाबी मिलने में बहुत समय लगता है और किसी को मिलती भी नहीं। हम सब अपनी पूरी लगन और ईमानदारी से बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन कभी कभी बहुत मेहनत करने के बाद भी हमें उसके अनुसार उसका फल नहीं मिल पाता।

और आपने देखा होगा कि कुछ लोगों ने बहुत कम मेहनत की और वह बहुत आगे निकल गए। आपने लोगों को कहते भी सुना होगा कि अरे, वह तो पढ़ने में मुझसे धीमा था, फिर भी मुझसे आगे कैसे निकल गया। आप बहुत कुछ सोच रहे हैं और करना चाह रहे हैं, लेकिन चीजें आपके अनुसार नहीं हो रही हैं और असफलता बार बार आपके मुंह पर तमाचा मार रही हैं। और अंत में आप खुद को लाचार और कमजोर पा रहे हैं।

कई बार होता है कि हम इतने असफल हो जाते हैं कि फिर हमारा मन टूट जाता है, सारा उत्साह ही खत्म हो जाता है, सारा का सारा मोटिवेशन और लगन खतम हो जाती है। हम खुद को कमजोर और हारा हुआ मान लेते हैं और बहुत निराशा भी होती है। आप खुद पर विश्वास करना सीखो। और आखिर निराशा हो भी क्यों ना। दुखी कैसे न हो हम।

क्योंकि हमने तो बहुत प्रयास किया था। जितना हमसे हो सकता था उतना किया था। लेकिन हमें उस परिश्रम के अनुसार उसका फल नहीं मिल पाया और एक बार फिर असफलता का मुंह देखना पड़ा। दोस्तों अगर ये सारी परिस्थितियां, अगर ये सारी घटनाएं आपके जीवन में घटित हो रही हैं या नहीं भी घटित हो रही हैं तब भी आप इस को अंत तक देखिएगा क्योंकि आज के इस article में आप खुद पर विश्वास करना सीखो गे।

आपको कुछ ऐसी बातें पता चलेंगी जो कि शायद ही आपने पहले कहीं सुनी हों और जो बातें आज आप जानने वाले हो वो बातें आपको इन सारी मुश्किलों से बाहर निकाल लेंगी।

एक बार की बात है। जैसे आज के समय में स्कूल होते हैं वैसे ही पुराने समय में आश्रम और गुरुकुल हुआ करते थे। उस समय के लोग अपनी शिक्षा ग्रहण करने आश्रमों में ही जाया करते थे। उस समय हर शिष्य अपने गुरु का बहुत ही सम्मान किया करता था और प्राचीन आश्रमों में किताबी ज्ञान से ज्यादा बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान सिखाया जाता था।

ऐसे ही प्राचीन समय में एक आश्रम था जिसमें विभिन्न प्रकार के विद्यार्थी गुरु से शिक्षा ग्रहण किया करते थे। आश्रम से शिक्षा ग्रहण करने के बाद सभी विद्यार्थी अपने अपने राज्य वापस लौट जाया करते थे। उन्हीं शिष्यों में संदीप नाम का एक शिष्य था। वह भी आश्रम की शिक्षा पूरी करने के बाद अपने राज्य वापस लौट आता है।

वापस आने के बाद सभी लोग अपने अपने राज्य में किसी न किसी काम में वापस लग जाते हैं। धीरे धीरे समय बीतता गया। संदीप और बड़ा होने लगा। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही अच्छी नहीं थी। संदीप के घरवालों ने भी यही सोचा था कि संदीप जब आश्रम से अपनी शिक्षा पूरी करके लौटेगा तो वह बहुत कामयाब बनकर लौटेगा और हमारे घर की सारी गरीबी को खत्म कर देगा।

लेकिन संदीप के साथ ये सारी बातें उल्टा पड़ रही थी। वह आश्रम से शिक्षा ग्रहण करके तो आया था, लेकिन जब वह काम की तलाश में कहीं जाता था तो उसे कोई भी काम नहीं मिलता था। वह छोटी छोटी चीजों में असफल हो जाया करता था। संदीप एक बार अपने राज्य के राजा के यहां गया हुआ था क्योंकि राजा अपनी सेना में नए सैनिकों को भर्ती कर रहा था। संदीप भी राजा की सेना में भर्ती होने के लिए उसके महल पहुंच जाता है।

लेकिन संदीप जब राजा के अधिकारियों के सामने अपनी योग्यता दिखाने के लिए प्रस्तुत होता है तो उसके हाथ पैर कांपने लगते हैं। यह देख राजा के अधिकारी उसे वहां से बाहर कर देते हैं और उससे कहते हैं कि तुम राजा की सेना में भर्ती होने लायक नहीं हो भी।

इस बात से संदीप बहुत ही निराश और दुखी हो जाता है क्योंकि उसके जीवन में अगर कोई उम्मीद बची हुई थी तो वह यही थी कि वह राजा की सेना में भर्ती होकर अपने घर के आर्थिक हालातों को ठीक कर देगा। लेकिन वहां से निकाले जाने के बाद वह दुखी मन से अपने घर वापस आ जाता है।

उसे लोगों के तरह तरह के ताने सुनने को मिलते हैं। लोग कहते हैं कि संदीप बहुत पढ़ा लिखा है लेकिन फिर भी उसे कोई काम नहीं मिल पा रहा है। तो कुछ लोग कहते हैं कि इसने तो आश्रम में ठीक से शिक्षा ही ग्रहण नहीं की होगी। कुछ लोग तो यहां तक कहने लगते हैं कि यह मंदबुद्धि है। इसमें सोचने समझने की क्षमता ही कम है। इसीलिए इसका दिमाग ठीक तरह से काम नहीं कर पा रहा है। मतलब लोग उसे तरह तरह के ताने मारते थे। इस वजह से संदीप बहुत ज्यादा परेशान हो गया था।

एक दिन तो उसके मन में आत्महत्या करने का विचार भी आने लगा, लेकिन जैसे तैसे उसने स्वयं को संभाला। उसने अपनी समस्या अपने एक पुराने मित्र से बताई। मित्र ने संदीप को सलाह देते हुए कहा कि संदीप तुम एक बार फिर आश्रम में अपने गुरु से मिलने जाओ और उनसे अपनी सारी समस्याएं बताओ। वह जरूर तुम्हारी समस्या का कोई न कोई समाधान निकालेंगे। संदीप पहले तो हिचकता है कि आश्रम को छोड़े हुए बहुत समय हो गया। पता नहीं मुझे गुरुजी पहचान भी पाएंगे या नहीं। लेकिन फिर वह जैसे तैसे हिम्मत जुटाकर आश्रम चला जाता है।

वहां पर उसे वही पुराने गुरु मिलते हैं, जिन्होंने संदीप को बचपन में पढ़ाया था। गुरु अब बूढ़े हो चले थे। संदीप गुरु से मिलता है और उनके समक्ष बैठकर अपनी समस्याएं बताना शुरू करता है। गुरु पूरी शांति से संदीप की बातें सुनने लगते हैं। संदीप कहता है कि हे गुरुवर! मैं जो भी करता हूं उसमें सफल हो जाता हूं। मैं किसी भी परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर पा रहा हूं। मेरे घरवालों को उम्मीद थी कि मैं घर के आर्थिक हालातों को ठीक कर दूंगा, लेकिन मैं उसमें भी अब तक असफल ही रहा हूं।

मैंने अपनी शिक्षा भी अच्छी तरह से पूरी की थी। लेकिन तब भी मैं लगातार असफल होता जा रहा हूं। मैं हर परीक्षा की घड़ी में खुद को लाचार पा रहा हूं, जिस वजह से मेरे दिमाग में तरह तरह के नकारात्मक विचार जन्म ले रहे हैं। इसी तरह से उसने और भी अपनी समस्याएं गुरु को बताई। जब संदीप ने अपनी बात पूरी कर ली तब गुरु ने कहा, संदीप, मैं अभी तुम्हें एक कहानी सुनाऊँगा और इस कहानी में तुम्हारी सारी समस्याओं का समाधान छुपा है। बस तुम इसे ध्यान से सुनना।

एक बार एक चरवाहा जंगल में भेड़ चराया करता था। एक दिन भेड़ चराते चराते वह जंगल में इतना आगे चला गया कि वहां उसे एक शेर का छोटा बच्चा मिला। उसने अभी आंखें भी नहीं खोली थी। छोटा बच्चा सबको प्यारा लगता है। यह जानते हुए भी कि यह शेर का बच्चा है। वह चरवाहा उस बच्चे को अपने घर ले आया और भेड़ों का दूध पिलाने लगा। वह बच्चा धीरे धीरे बड़ा होने लगा।

वह भेड़ के बच्चों के साथ खेलता, उनके साथ ही दूध पीता और उनके जैसा ही बोलता। वह खुद को भेड़ ही समझता था। अब बच्चा बड़ा हो गया था।

एक दिन किसी दूसरे शेर ने भेड़ों के झुंड पर हमला कर दिया। सभी भेड़ें डरकर भागने लगी। शेर का वह बच्चा भी भेड़ों की ही तरह डरते कांपते भेड़ के झुंड की तरफ भागने लगा। वह जवान हो गया था, लेकिन फिर भी डरा हुआ भेंड़ के झुंड के साथ ही भागा जा रहा था। भागते हुए शेर के बच्चे को, जोकि अब बड़ा हो गया था, उस हमलावर शेर ने देख लिया। उसे इस तरह भागते देख हमलावर शेर को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने भेड़ों की ओर से अपना ध्यान हटाया और उस शेर के बच्चे को ही पकड़ लिया और उसे समझाने लगा कि तू क्यों डर रहा है। तू तो खुद एक शेर है।

दूसरा शेर जो कि भेड़ों के झुंड के साथ भाग रहा था। उसने कहा कि शेर तो जंगल का राजा होता है। उसकी दहाड़ से जंगल के सभी जानवर कांपते हैं। मैं दूध पीने वाला इतना शक्तिशाली शेर नहीं हो सकता। हमलावर शेर उसे पकड़कर एक तलाब के पास ले गया और तालाब के पानी में उसे उसका चेहरा दिखा कर बोला कि देख तेरा चेहरा मेरे जैसा ही है, तेरे दांत मेरे जैसे हैं, तेरे पंजे भी मेरे जैसे ही हैं। इसीलिए तो भेड़ नहीं हैं। तू शेर है। दूसरा शेर कहने लगा ठीक है, मेरा चेहरा तेरे जैसा ही है। लेकिन तू तो बहुत शक्तिशाली है। मेरी आवाज से तो कोई डरता भी नहीं। हमलावर शेर ने कहा तेरी आवाज से भी सब डरेंगे। बस तो खुद को शेर समझ।

जिस दिन से तूने खुद को शेर समझ लिया, उस दिन से तुझसे सब डरेंगे। बस तू अपने अंदर की शक्ति को पहचान और खुद पर भरोसा रख। तुझे यह महसूस करना होगा कि मैं भी एक शेर हूं। मेरे अंदर भी ताकत है। मैं भी जंगल का राजा बन सकता हूं। जिस दिन से तेरे दिमाग में यह बात बैठ जाएगी, उस दिन से तो किसी से नहीं डरेगा। तू आज डर कर इसीलिए भाग रहा था क्योंकि तो खुद को भेड़ समझ रहा था। तो जब तक खुद को भेड़ समझता रहेगा, तू भागता रहेगा।

क्योंकि बचपन से लेकर आज तक तो खुद को भेड़ ही समझता आ रहा है। तू भेड़ों के बीच रहता है, इसीलिए तूने भी खुद को भेड़ मान लिया है और आज तक तुझे किसी ने शेर कहकर पुकारा भी नहीं। इसीलिए तो भेड़ ही बनकर रह गया।

गुरु ने कहा, संदीप, तुम्हारी जिंदगी में भी यही हो रहा है। तुम्हारे अंदर सारी योग्यताएं हैं, लेकिन तुम भी खुद को भेड़ ही समझ रहे हो। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कोई भी तुम्हें प्रोत्साहित नहीं कर रहा है कि तुम भी कर सकते हो। लोग तुम्हें सिर्फ अपनी नकरात्मक ऊर्जा ही दे रहे हैं। लोग तुमसे सिर्फ यही कह रहे हैं कि संदीप ठीक से पढ़ा नहीं हैं। संदीप योग्य नहीं हैं, इसीलिए उसे कहीं पर भी कोई काम नहीं मिल रहा है।

तुम्हारे चाहने वालों ने, आस पड़ोस वालों ने असफलता का डर तुम्हारे दिमाग में भर दिया है। बचपन से ये सभी लोग तुम्हें अयोग्य ही बोल रहे हैं और अयोग्य ही समझ रहे हैं, जिससे तुम्हारी मानसिक दशा भी अयोग्य सी हो गई है। तुम अपने नकारात्मक विश्वासों में कैद हो गए हो। तुम खुद को असफल और हारा हुआ मानने लगे हो, क्योंकि लंबे समय तक जब किसी को अयोग्य और असफल बोला जाएगा तो उसका दिमाग सच में अयोग्य और असफल हो जाएगा। वह खुद को कमजोर और लाचार समझने लगता है, क्योंकि लोगों ने उसे कमजोर और लाचार ही बोला है।

इस दुनिया में प्रोत्साहित करने वाले लोग बहुत कम हैं। संदीप ज्यादातर लोग बस तुम्हें नकारात्मक ऊर्जा ही देंगे। वह तो चाहते हैं कि तुम जिंदगी में सफल न हो। तुम जिंदगी भर भेड़ ही बने रहो। वे तुम्हारे भेड़ बने रहने पर ही खुश हैं, क्योंकि उन्हें भी डर है कि अगर तुम शेर बन गए तो तुम उन्हें खा जाओगे, क्योंकि शेर से सब डरते हैं। अर्थात उन्हें डर है कि तुम जिंदगी में उनसे आगे निकल जाओगे। अगर अपनी जिंदगी में कोई व्यक्ति बहुत सफल होता है तो सबसे पहले आस पड़ोस के लोगों और रिश्तेदारों को ही दुख तकलीफ होती है। सफल होने के लिए तुम्हें खुद को अंदर से बदलना होगा। खुद के दिमाग पर काम करना होगा। जिस दिन तुम खुद को शेर अर्थात योग्य समझने लगे और खुद पर विश्वास करने लगोगे, उस दिन तुम खुद ही सफल हो जाओगे।

गुरु ने कहा संदीप, अगर किसी बच्चे को बचपन से ही बोला जाएगा कि तू कमजोर है तो मंदबुद्धि है। तू गधा है तो जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएगा तो जीवन भर असफल ही रहेगा। तो सच में वह जीवनभर असफल ही रह जाएगा और यह सब बातें उसे भेड़ बना देंगी और वह खुद को भेड़ ही मानने लगेगा। यहां भेड़ से मतलब है कि वह खुद को कमजोर और लाचार समझने लगेगा। वह मानने लगेगा कि वह जिंदगी में कुछ भी नहीं कर सकता तो उसके आसपास के लोग उसे खुद कमजोर बना देते हैं।

लेकिन किसी बच्चे से बचपन से ही यह बोला जाए कि तू शेर है तो योग्य है, तू कर सकता है। तेरे अंदर बहुत ताकत है, बहुत हिम्मत है। दुनिया की कोई भी ताकत तुझे सफल होने से नहीं रोक सकती। अगर बचपन से ही यह सब विचार उसके दिमाग में डाल दिए जाएं तो वास्तव में उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि अब उसके दिमाग में यह बैठ चुका है कि वह सफल हो जाएगा। जब किसी के दिमाग में यह सब बातें पूरे विश्वास के साथ बैठ जाती हैं तो फिर यह ब्रम्हांड खुद उसे सफल बनाता है। बच्चा जब जानने समझने लायक होता है तो उसके आसपास क्या चल रहा है, लोग क्या बोल रहे हैं, वह यह सब बातें बड़े ध्यान से सुनता है और समझता भी है।

गुरु कहते हैं कि अगर उस छोटे बच्चे के अंदर अच्छी सोच, अच्छे विचार भर दिए जाएं और उसके बारे में अच्छा बोला जाए कि तेरे अंदर असीम संभावनाएं हैं तो जो चाहे कर सकता है और सभी सकरात्मक विचार उसके अंदर डाल दिए जाएं तो उसके दिमाग की क्षमता बढ़ने लगती है। उसका डर खत्म होने लगता है और उसके अंदर निर्णय लेने और संघर्ष करने की शक्ति बढ़ने लगती है और ऐसे सकारात्मक सोच वाले बच्चे आगे चलकर अपनी जिंदगी में जरूर सफल होते हैं। कोई बच्चा कितना भी कमजोर हो, हमें उसे कभी भी गधा या कमजोर नहीं बोलना चाहिए।

जब हम किसी बच्चे को कमजोर और लाचार बोलते हैं तो वह सच में स्वयं को कमजोर और लाचार मानने लग जाता है। वह समझने लगता है कि वह सच में दूसरों से कमजोर है। उसका दिमाग खुद को कमजोर समझने लगता है। उसे लगने लगता है कि वास्तव में वह कुछ भी नहीं कर सकता, क्योंकि बचपन से ही उसके आसपास के लोगों के द्वारा बोला जा रहा है कि तू यह है तो वह है तो यह नहीं कर सकता तो वह नहीं कर सकता। तो यह तमाम विचार बचपन से ही उसके अंदर बैठ जाते हैं जिसकी वजह से वह ना तो कुछ बड़ा सोच पाता है और ना ही कुछ बड़ा कर पाता है और जिंदगी भर भेड़ बन कर रह जाता है।

लेकिन अगर वहीं पर बचपन से ही उस बच्चे के दिमाग में अच्छे विचार डाले जाएं, अच्छी सोच पैदा की जाए तो भविष्य में आगे चलकर वह एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेगा और जब कोई व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है तो उसके रास्ते में आने वाली बाधाएं खुद ब खुद दूर होनी शुरू हो जाती हैं। संदीप बचपन से तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है। बचपन से लोगों ने तुम्हारे दिमाग में यही सब नकरात्मक विचार भर दिए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बड़े होकर भी तुम यही सब सोच रहे हो। तुम बिना डरे सबसे पहले खुद को सकारात्मक ऊर्जाओं से भरो।

जब तुम खुद को सकारात्मक ऊर्जा से भर लोगे, तब तुम स्वयं ही सफल हो जाओगे। फिर सफलता के द्वार तुम्हारे लिए खुलने लगेंगे। गुरु ने कहा, कहीं भी जाने से और कुछ भी करने से पहले खुद को सकारात्मक विचारों से भरो। तुम्हें असफल और नकरात्मक विचारों की ओर ध्यान ही नहीं देना है। तुम्हें बस खुद को सकारात्मक ऊर्जाओं से भरना है। तुम प्रतिदिन जब सुबह उठो और रात में सोने जाओ, तब स्वयं से कहो और महसूस करो कि मैं भी कर सकता हूं। मैं हार नहीं मान सकता, क्योंकि मेरे अंदर भी क्षमता है, मेरे अंदर भी योग्यता है।

खुद को सकारात्मक ऊर्जाओं और विचारों से लगातार भरते रहो। इसके बाद तुम खुद धीरे धीरे यह महसूस करने लगोगे कि सफलता के द्वार तुम्हारे लिए खुलने लगे हैं। गुरु आगे कहते हैं कि संदीप तुम यह काम आज से ही शुरू कर दो। अगर तुम यह काम आज से ही शुरू कर देते हो, तुम्हें बहुत ही जल्द इसका प्रभाव भी देखने को मिलेगा। इतना कहने के बाद गुरु मौन हो गए। संदीप अपने गुरु का धन्यवाद करते हुए एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ अपने घर वापस आ जाता है।

तीन महीने के अभ्यास के बाद सबसे पहले वह अपने अंदर के डर को खत्म करता है। खुद को सकारात्मक ऊर्जाओं और विचारों से भरता है। ऐसे ही एक दिन राजा के सैनिक उसके गांव आते हैं और कहते हैं कि राजा की सेना में कुछ नये सैनिकों की जरूरत है। इसीलिए जो भी व्यक्ति राजा की सेना में भर्ती होना चाहता है, राज्य का सैनिक बनना चाहता है, वह आज से ठीक पांच दिन बाद महल आकर अपनी योग्यता का प्रमाण देकर सेना में भर्ती हो सकता है।

ठीक पांच दिन बाद कड़ी मेहनत के बाद अपनी योग्यता का प्रमाण देने संदीप राजा के महल पहुंच जाता है। राजा के अधिकारी इस बार जब उसे देखते हैं तो उन्हें संदीप में एक अलग ही ऊर्जा और उत्साह दिखाई पड़ रहा था। इस बार वह पिछली बार की तरह डरा और घबराया हुआ नहीं था। इस बार संदीप अपनी सभी परीक्षाओं में पास हो जाता है और राजा की सेना में भर्ती भी हो जाता है।

जब संदीप के परिवार वालों को यह बात पता चली तो सब बहुत खुश हो गए। दोस्तों गुरु के माध्यम से आज हमें ऐसी बातें पता चली जो कि हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। उम्मीद है कि इस आर्टिकल से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा और आर्टिकल में यहां तक बने रहने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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