यह बात उन दिनों की है जब बुद्ध आम्र वन में अपना समय व्यतीत कर रहे थे। इस समय तक बुद्ध की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल चुकी थी। बहुत दूर दूर से लोग अपनी चिन्ताओं और परेशानियों का समाधान खोजने बुद्ध के पास आते थे। ऐसे ही एक दिन जब बुद्ध आम्र वन में अपने शिष्यों को प्रवचन दे रहे थे तो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपने बीस इक्कीस वर्ष के पुत्र को अपने साथ लिए बुद्ध की तरफ चला आ रहा था। जब वह प्रवचन स्थल के पास पहुँच गए तो बुद्ध ने एक नजर उन पर डाली और इशारे से प्रवचन में बैठने के लिए कहा। जब प्रवचन समाप्त हो गया और सभी लोग वहां से चले गए तो बुद्ध ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और बैठने के लिए कहा। वहाँ चारों तरफ हरियाली छाई हुई थी। मौसम बहुत सुहाना था और तरह तरह के पक्षियों की आवाजें गूँज रही थी। ऐसा नजारा देखकर उस व्यक्ति को अंदर से असीम शांति महसूस हो रही थी। इसके बाद बुद्ध ने उस व्यक्ति से आने का कारण पूछा तो इस पर व्यक्ति ने कहा हे तथागत! मैं दो दिन की लंबी यात्रा करके अपने पुत्र को आपसे मिलवाने लाया हूँ। यह मेरा इकलौता पुत्र है और हर समय थका थका रहता है।
ऐसा लगता है जैसे इसके अंदर कोई जान ही नहीं है, कोई प्राणी नहीं है। इसका स्वभाव भी काफी चिड़चिड़ा हो गया है। अगर हम इसे कुछ भी कहते हैं तो यह हमारी छोटी छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है। इसके देखने की क्षमता भी उम्र से पहले ही कमजोर हो गई है और इसके बाल भी सफेद पड़ने लगे हैं। इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उम्र का लगना मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा। इसके साथ हो क्या रहा है तथागत? मैं अपने पुत्र के स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित हूं। जब मैं अपने पुत्र को वैध जी के पास लेकर गया तो उन्होंने कुछ औषधि दी और कहा, अपने पुत्र को तनाव कम लेने के लिए कहो। वह अपने दिमाग में बहुत अधिक तनाव लेता है, इसीलिए उसकी ऐसी हालत हो गई है। लेकिन मुझे उनके बहुत समझाने के बाद भी तनाव का मतलब समझ नहीं आया। मुझे नहीं पता कि तनाव होता क्या है, यह किन कारणों से आता है और उसे कैसे अपने पुत्र के दिमाग से निकालूं।
लेकिन मुझे सबसे पहले तो यह समझना है कि तनाव होता क्या है? इसीलिए तथागत मैं आपके पास आया हूं। कृपया आप मेरी समस्या का समाधान कीजिये। यह सुन बुद्ध उसके पुत्र को बड़े ध्यान से देखते हैं, उसके चेहरे को देखते हैं, उसकी आंखों को देखते हैं और फिर उसके हाथों की नब्ज को भी देखते हैं। यह सारी विधि करने के पश्चात बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं तनाव लेना तो कोई नहीं चाहता। लेकिन फिर भी यह तनाव लोगों के दिमाग को दीमक की तरह पकड़ लेता है और व्यक्ति जान भी नहीं पाता कि वह तनाव में जी रहा है। लेकिन अगर व्यक्ति तनाव के कारणों को अच्छे से समझ लेता है और तनाव के बारे में कोई ऐसा पैमाना बना लेता है जिससे वह जान सके कि वह कितने तनाव में हैं तो वह इस समस्या का समाधान भी खोज सकता है। सबसे पहले तो तुम यह समझो कि तनाव होता क्या है? जब भी कोई व्यक्ति कोई काम कर रहा होता है, लेकिन उसका मन कहीं दूर भटक रहा होता है। कल्पनाओं में होता है तो उसके शरीर और मन के बीच एक दूरी पैदा हो जाती है।
यह दूरी जितनी अधिक होगी, व्यक्ति उतनी ही ज्यादा बेहोशी की अवस्था में होता है और शरीर व मन के बीच की इसी दूरी, इसी खिंचाव को तनाव कहा जाता है। आखिर कोई पसंदीदा खेल खेलने के बाद व्यक्ति चुस्ती और प्रसन्नता से क्यों भर जाता है? जबकि उसने तो अपने शरीर को थकाया है। लेकिन समझने वाली बात यह है कि खेलते समय मन और शरीर एक साथ पूरी तरह से उस खेल में केंद्रित होते हैं, जिससे शरीर और मन के बीच दूरी पैदा नहीं होती और कोई तनाव पैदा नहीं होता। और अगर दिमाग में कोई तनाव था भी तो वह भी दूर हो जाता है। लेकिन इसके विपरीत जब हम कोई ऐसा काम करते हैं जो हमें पसंद नहीं तो हमारा शरीर तो उस काम को कर रहा होता है। लेकिन हमारा मन कहीं दूर कल्पनाओं में भटक रहा होता है, जिससे शरीर और मन के बीच एक दूरी पैदा हो गई और तनाव ने जन्म ले लिया। इसीलिए व्यक्ति को एक समय पर सिर्फ एक ही काम करना चाहिए और अपने तन और मन की सारी शक्ति उसी एक काम पर लगा देनी चाहिए जिससे व्यक्ति के अंदर तनाव पैदा ही न हो। इसके बाद बुद्ध ने कहा, तनाव पैदा होने के मुख्य आठ कारण होते हैं और जिसने इन कारणों को समझ लिया वह जीवनभर तनाव मुक्त रह सकता है।
मुख्य कारणों में सबसे पहला कारण है अतिमहत्वाकांक्षी होना। महात्वाकांक्षी होना अच्छी बात है, लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि इंसान के लक्ष्य कभी पूरे ही नहीं होते। उसका एक लक्ष्य पूरा हुआ नहीं कि वह दूसरे की तरफ भागने लगता है। दूसरा पूरा हुआ तो तीसरे की तरफ और इस तरीके से वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए जिंदगी भर गोलगोल घूमता रहता है। इसीलिए जो व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होता है, जिसने बड़े बड़े लक्ष्य बनाए होते हैं, वह वर्तमान में कभी रह ही नहीं पाता। उसका मन सदैव भविष्य की योजनाएं बनाने में ही व्यस्त रहता है। उसका शरीर तो वर्तमान में रहता है, लेकिन मन भविष्य में ही रहता है, जिससे मन और शरीर के बीच दूरी पैदा हो जाती है और वह तनाव भरी जिंदगी जीने लगता है। बुद्ध के मुंह से यह बात सुन उस लड़के ने कहा, बुद्ध! तो फिर इसका मतलब है कि हमें लक्ष्य नहीं बनाने चाहिए, क्योंकि लक्ष्य बनाना भी तो महत्वकांक्षा ही है। इस पर बुद्ध ने कहा, जीवन में लक्ष्य बनाना कोई गलत बात नहीं, लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब हम अपना पूरा ध्यान उस लक्ष्य से मिलने वाले परिणाम पर ही लगा देते हैं और उसके परिणाम की चिंता करते रहते हैं। व्यक्ति को वर्तमान में जीना आना चाहिए।
आप लक्ष्य बनाइए और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत करिए। लेकिन साथ ही साथ आपको इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि आप अभी वर्तमान में जी रहे हैं और वर्तमान ही सत्य हैं। बुद्ध ने आगे कहा, तनाव का दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं ईर्ष्या। जब व्यक्ति ईर्ष्या और जलन से भर जाता है तो उसका मन अंदर से सड़ने लगता है। ईर्ष्या एक आंतरिक घाव है। आंतरिक घाव यानी मन का घाव। व्यक्ति के शरीर का घाव तो भर सकता है, लेकिन मन का घाव कभी नहीं भर सकता। इसीलिए व्यक्ति को दूसरे की खुशी और तरक्की से कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ईर्ष्या तनाव का कारण है। इसके बाद बुद्ध ने तनाव का अगला कारण बताते हुए कहा कि अरुचि पूर्ण काम करने से भी मन में तनाव पैदा होता है। जो काम करना हमें पसंद ही नहीं है। जिस काम में हमारी रुचि ही नहीं है, उस काम में हमारा मन लगी नहीं पाएगा। हमारा शरीर तो वहीं बैठा रहेगा, लेकिन हमारा मन कल्पनाओं की उड़ान भरेगा, जिससे शरीर और मन के बीच दूरी पैदा हो जाती है और व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। इसीलिए इंसान को हमेशा अपनी रुचि के अनुसार ही कार्य करने चाहिए।
अगर व्यक्ति ने यह पता कर लिया कि उसे कौन सा काम करना पसंद है और वह उसी काम को अपने जीवन का लक्ष्य बना लेता है तो फिर वह काम उसके लिए काम नहीं बल्कि खेल बन जाता है। बुद्ध ने कहा तनाव का चौथा कारण होता है किसी दूसरे से अपेक्षा रखना। बुद्ध ने उस व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा, एक पिता होने के नाते तुम्हारी अपने पुत्र से बहुत सी अपेक्षाएं होंगी कि तुम्हारा पुत्र एक बहुत ही कामयाब इंसान बने। तुम्हारा नाम रौशन करे। जैसा तुम चाहते हो उस तरह का जीवन जीए। तुम्हारी हर बात माने। लेकिन क्या आज तक कभी किसी की सारी अपेक्षाएं पूरी हुई हैं? जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे से कोई अपेक्षा रखने लगता है तो वह अनजाने में अपने लिए तनाव पैदा करने लगता है। जरा सोचो कि अगर तुम्हारा बेटा तुम्हारे अनुसार काम नहीं कर रहा और वह नहीं बन पा रहा, जो तुम उसे बनाना चाहते हो तो निश्चित रूप से तुम्हारे दिमाग को तनाव पकड़ लेगा।
तुम तनाव से भरा जीवन जीना शुरू कर दोगे और इस तनाव के वश में आकर तुम ऐसा व्यवहार करोगे, ऐसी बातें करोगे कि तुम्हारा अपने पुत्र के साथ संबंध और भी खराब होता चला जाएगा। इसीलिए व्यक्ति को जितना हो सके उतनी कम अपेक्षाएं दूसरों से रखनी चाहिए और अगर पूरी तरह से तनावमुक्त रहना है तो दूसरों से अपेक्षा रखना ही बंद कर दूं। इसके बाद बुद्ध ने कहा कि शारीरिक कष्ट भी इंसान के तनाव का एक कारण होता है। जब व्यक्ति किसी शारीरिक पीड़ा से गुजर रहा होता है तो उसका पूरा ध्यान बस अपने उस शारीरिक दर्द पर होता है और वह पूरे दिन बस उसी के बारे में सोचता रहता है, जिससे उसका मन दुःख के विचारों से भर जाता है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति तनावग्रस्त रहने लगता है। यह सुन उस व्यक्ति ने कहा कि हे बुद्ध! शारीरिक दुख तो किसी भी व्यक्ति को हो सकता है तो फिर क्या वह व्यक्ति जीवनभर तनाव में ही जीएगा? इसका जवाब देते हुए बुद्ध ने कहा कि इंसान को यह बात समझनी चाहिए कि हमारा जीवन दुखों का आधार है। जैसे जैसे हमारा जीवन आगे बढ़ता है, इसमें दुख आते हैं, बीमारियां आती हैं और फिर अंत में मृत्यु भी आती है तो बीमारियां इंसान के जीवन का अभिन्न अंग हैं। कोई इनसे बच नहीं सकता।
बस किसी किसी के जीवन में यह समय से पहले आ जाती हैं तो किसी के बाद में आती सबको हैं। जब इंसान का मन इस बात को अच्छे से समझ लेगा तो फिर वह अपनी बीमारी के बारे में सोच सोचकर ज्यादा तनाव नहीं लेगा, क्योंकि यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं और इसके लिए व्यक्ति को शारीरिक रूप से भी अभ्यास करते रहना चाहिए। अपने जीवन में व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली को भी जगह देनी चाहिए ताकि उसका शरीर लंबे समय तक निरोगी रहकर सही से काम कर सके। तनाव का अगला कारण होता है अपनी योजनाओं को समझने के लिए समय न देना। कुछ लोगों के दिमाग में कोई विचार आया नहीं कि वह बिना सोचे समझे उस पर काम करना शुरू कर देते हैं और जब उस काम में उन्हें असफलता मिलती है तो वह तनाव से भर जाते हैं, क्योंकि उन्होंने उस काम को शुरू करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा नहीं की थी।
इंसान को कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके अच्छे और बुरे परिणामों के बारे में ठीक से सोच विचार कर लेना चाहिए। इंसान को इस बारे में भी सोच लेना चाहिए कि अगर यह योजना सफल नहीं हुई तो फिर इसके बाद मैं क्या करूंगा। इसीलिए व्यक्ति को अपनी योजनाओं को ठीक से समझने के लिए पूरा समय देना चाहिए ताकि बाद में उस योजना की वजह से तनाव पैदा न हो। तनाव का सातवां सबसे बड़ा कारण होता है टालमटोल करना। आज के काम को कल पर टालना। आप लोगों ने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि आलस्य ही इंसान के शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। इंसान आलस्य की वजह से आज के काम को कल के लिए टाल देता है और फिर काम को टालना उसकी आदत बन जाती है। काम को कल पर टालने वाले व्यक्ति का काम कभी भी समय पर पूरा नहीं हो पाता और अगर किसी तरह से पूरा हो भी जाता है तो वह उतना अच्छा नहीं हो पाता जितना अच्छा उसे किया जा सकता था। और फिर यह बात व्यक्ति के अंदर तनाव पैदा करती है। लेकिन काम को टालना या काम को एकदम अंत समय पर करना एक आदत है। इसीलिए व्यक्ति न चाहते हुए भी बार बार अपनी इस आदत का शिकार बन जाता है और काम को टालता रहता है।
और फिर जब काम की समय सीमा पास आ जाती है तो वह तनाव से भरकर काम को पूरा करने का प्रयास करता है। इसीलिए तनावमुक्त रहने के लिए व्यक्ति को काम को टालने की आदत छोड़नी पड़ेगी और यह तभी संभव है जब व्यक्ति काम को समय से पहले खत्म करने का निश्चय करे। सबसे आखिरी और सबसे प्रमुख कारण जो तनाव का होता है, वह है ज्यादा सोचना। लगातार सोचते रहना भी एक बीमारी है और यह उस व्यक्ति में सबसे ज्यादा पाई जाती है जो कपोल कल्पना करता है। जो अतीत की घटनाओं और भविष्य की बातों के बारे में सोचता रहता है, जो बेवजह के अनुमान लगाता रहता है। इसीलिए व्यक्ति को ज्यादा सोचने की आदत पर लगाम लगाना चाहिए। इसके लिए उसे जितना हो सके खुद को काम में व्यस्त रखना चाहिए और हर दिन ध्यान का अभ्यास करने को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए।
बुद्ध के मुंह से यह सारी बातें सुनकर उस व्यक्ति ने हाथ जोड़ कर कहा, बुद्ध, मेरा पुत्र तो अभी मात्र बीस वर्ष का ही है और इसमें अभी इतनी समझ भी नहीं है कि यह आपकी बताई सारी बातों का एक साथ पालन कर सके। आप कृपया करके तनाव मुक्त रहने का कोई आसान सा तरीका बता दें जिससे मेरा बेटा उसका अनुसरण भी कर सके और तनावमुक्त भी रह सके। उस व्यक्ति की यह प्रार्थना सुन बुद्ध ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया, अगर तुम इतनी सारी बातों का पालन नहीं कर सकते तो इसके लिए एक बहुत ही आसान विधि है। तुम एक बार में एक काम को करने पर ध्यान लगाओ। तुम जो भी काम कर रहे हो उस समय पर सिर्फ उसी काम को करो। सिर्फ उस पर अपना पूरा ध्यान लगाओ और अगर तुम्हारा मन इधर उधर भटक जाता है तो जैसे ही तुम्हें याद आए, उसे वापस फिर उसी काम में लगा दो।
यह सबसे आसान और अच्छा तरीका है तनावमुक्त रहने का। जब तुम भोजन करो तो उस समय सिर्फ भोजन ही करो। उसके पूरे स्वाद का आनंद लो। उसे अनुभव करो। जब चलो तो अपना पूरा ध्यान सिर्फ चलने में लगा दो। इससे तुम्हारा मन और तुम्हारा शरीर दोनों एक जगह पर केंद्रित रहेंगे। दोनों के बीच दूरी पैदा नहीं होगी जोकि तनाव का मुख्य कारण होती है। दोस्तों आज की युवा पीढ़ी एक ही समय पर दो दो तीन तीन काम करने की आदी हो चुकी है जैसे फोन पर बात करते हुए गाड़ी चलाना, खाना खाते हुए टीवी देखना या फोन चलाना और फिर इनकी शिकायत रहती है कि मैं तनाव में जी रहा हूं। मेरा मन अशांत रहता है। मैं चिड़चिड़ा सा हो गया हूं। जब कोई व्यक्ति एक ही समय पर तीन तीन काम करेगा तो तनाव पैदा होना तो स्वाभाविक है, क्योंकि दिमाग तो एक समय पर पूरा ध्यान लगाकर सिर्फ एक ही काम कर सकता है। पूर्ण रूप से एक ही समय पर दो कामों पर ध्यान कभी नहीं लग सकता। इसीलिए जहां तक संभव हो सके एक समय पर सिर्फ एक ही काम करने का प्रयास करें, वह भी पूरे ध्यान के साथ। धन्यवाद।